आमंत्रण

भारत के वित्तीय विकास की राजनैतिक अर्थव्यवस्था समझने हेतु भोपाल मे तीन दिवसीय सेंमिनार

 

1 से 3 नवंम्बर 2017 तक 

स्थानः होटल विज्ञयश्री, एमपी नगर, भोपाल

बहुत लम्बे अरसे से यह महसूस किया जा रहा है कि हम जमीनी स्तर पर जल जगंल जमीन, स्वास्थ्य, पर्यावरण, प्रदुषण, विस्थापन, और पूर्नवास जैस कई मुद्धों पर संघर्षरत है। लेकिन इनसभी मुद्धो की जड वित्त और वित्तीय संस्थाऐं जो परदे के पीछे रह कर हमारे जीवन को प्रभावित कर रहे है उन पर निशाना हम कमही साधते है। वित्त और वित्तीय संस्थाओ का मुद्धा कही पीछेछुटता जा रहा है। हमे आज के दौर मे वित्त और वित्तीय संस्थाओ की सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक पृष्ठभूमि क्या है, उनके निवेश की शर्ते क्या है, यह सब जानना जरूरी हो गया है औरउन पर सवाल भी उठाने होगे ।

भारत सरकार देश के विकास के नाम पर बड़ी ढांचागत परियोजनाओ के निमार्ण पर पिछलें कुछ दशकों से अधिक बल दे रही है। इन परियोजनाओं को भारत के सकल घरेलू उत्पाद कीवृद्धि दर से जोडकर देखा जा रहा हैं। इन बड़ी परियोजनाओं में मुख्य रूप से विद्युत परियोजनाऐं, बांध, सड़कें, शहरी परियोजनाए,औद्योगिक क्षेत्रों के गलियारें (Industrial Corridor), स्मार्ट सिटी और अन्य मेगा परियोजना शामिल हैं। इन बड़ी परियोजनाओं को लागू करने के लिए भारत को भारी वित्त राशि की जरूरत है या होगी। जो कि विकसीत देशो की विकास वित्तसंस्थाओं या बैंकों से ऋण के तौर पर ली जायेगी। विकास वित्त संस्थाओं जैसं बहुपक्षीय वित्तीय संस्थाओं (Multilateral Development Bank)  मे विश्वबैंक, (IFC, IBRD, IDA, MIGA and ICSID) द्विपक्षीय संस्थानों और क्षेत्रीय संस्थानों की कुछ श्रेणिया  हैं।

विश्वबैक की 2015 की वार्षिक रिर्पोट के मुताबिक भारत ने 1945 से 2015 के बीच विश्व बैंक समूह  (IBRD & IDA) से सबसे अधिक ऋण, लगभग 677841 करोड, लिया है। एशियनडेवलवमेट बैंक ने 1986 से जून 2016 तक भारत को 239004 करोड रूपये का ऋण दिया है। इन निवेश के अलावा भारत मे आजकल निर्यात.आयात बैंक, चाईनीज बैंक, कोरियाएक्जिम बैंक द्विपक्षीय संस्थायें जैस जापान इन्टरनेशनल कोपरेशन ऐजेन्सी या जापान बैंक फार इन्टरनेशल कोपरेशन तेजी से निवेश कर रही है। भारत सरकार के आर्थिक मामलों के विभागके अनुसार द्विपक्षीय संस्थाओ का ऋण लगभग 4 लाख करोड़ से अधिक है।

अगर हम भारतीय वित्त संस्थाओं का स्वरूप देखे तो उनका हाल इससे भी भयानक दिखाई पडता है । परियोजना के वित्त पर भारतीय कोयला बिजली परियोजना का एक अध्ययन मे पायाकी 2005-15 के बीच 1000 मेगावाट की 125 परियोजनाओ मे अर्तराष्टीय वित्तीय संस्थाओ ने केवल 11 प्रतिशत पैसा लगाया है। शेष 89 प्रतिशत राष्ट्रीय वित्त संस्था ने निवेश किया है।जिसमें भारत की सार्वजनिक और निजी बैंक, गैर-बैंकिंग, भारतीय जीवन बीमा निगम, सिडबी और हुडको जैसी संस्थाए शामिल हैं। किसी भी परियोजना क्षेत्र या कंपनी मे अर्तराष्ट्रीय वित्तीयसंस्थाओ का एक छोटा सा निवेश राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं हेतु निवेश का रास्ता खोल देता है क्योकि ऐसा माना जाता रहा है कि अर्तराष्टीय वित्तीय संस्थाओं का निवेश एक विश्वसनीयताके साथ आता है । इन संस्थानों का निवेश से कई परियोजनाओं में लोग बुरी तरह प्रभावित हा रह हैं । हालांकि भारतीय बैंक इन परियोजना में निवेश करते समय परियाजना से जुडीपर्यावरण और सामाजिक सुरक्षा की स्वतंत्र रूप से कोई प्रक्रिया को पूरा करने के लिए बाध्य नहीं हैं।

भारतीय बैंकें बिना किसी सामाजिक या पर्यावरणीय प्रभावों पर सुरक्षा नीतियों के कई वर्षों से परियोजनाओ मे निवेश कर रहे है। दूसरी ओर अर्तराष्टीय वित्तीय संस्थाओ के पास उनके अपनेजवाबदेही तंत्र और सुरक्षा नीतिया है, लेकिन दुनिया भर और भारत में भी कई परियोजनाओं मे उधारकर्ताओं और उधारदाताओं द्वारा इन सुरक्षा उपायों की अनदेखी की गई है। हालाकिअर्तराष्टीय वित्तीय संस्थाओ की ये पर्यावरणीय और सामाजिक सुरक्षा निती भी विस्थापन और पर्यावरणीय प्रभावों से कोई बचाव नही कर पा रहीं है।

भारत के जनादोलनो द्धारा वित्त एवं वित्त संस्थानों बहुत ही कम निशाना बनाया गया। स्थानीय स्तर पर परियोजनाओ के प्रभाव और परियोजनाओं मे निवेश हेतु ज्यादातर वित्त संस्थाएअक्सर बिना किसी जवाबदेही के ही चली जाती है। भारत मे ऐसे दो ही सफल उदाहरण है जनांदोलन द्धारा सरदार सरोवर और महेश्वर बांध की लडाई मे वित्तीय संस्थानों को निशाना बनायागया। हमारा प्रयास उन्हें जवाबदेह और पारदर्शी बनाना है। इन संस्थाओं और बैंकों की निगरानी प्रणाली भी कमजोर है जो इन बड़ी परियोजनाओं के वित्त का काम करती है। इन वित्तीयसंस्थाओं का उद्देश्य लाभ कमाने से परे है उनकी भूमिका नीतियों को प्रभावित कर और उनमे परिर्वतन करना है ताकि देशों मे निजी कार्पोरेशन हेतु रास्ते आसान बनाकर अंतरराष्ट्रीय निवेशहेतु रास्ते खोले जा सके। हर साल ये संस्थान कई नई नितीया और परिभाषाऐं इन संरचनात्मक परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए बनातीं है। परिणामस्वरूप न तो लोग उन्हें ट्रैक कर पातेहैं और न ही ये आम लोग को  आसानी से समझ आता है। इसलिए इन संस्थाओं की राजनैतिक, आर्थिक और उनके निवेश की पृष्ठभूमि को विकास वित्त के नाम परदे के पीछे आज केपरिदृश्य मे समझना जरूरी हो गया है।

पर्यावरण और सामाजिक रूप से विनाशकारी परियोजनाओं के खिलाफ लड़ाई मे वित्त और निवेश की संरचना को समझना एक महत्वपूर्ण उपकरण बनता जा रहा है। दोनों अंतर्राष्ट्रीय औरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के लिए उनके प्रभावों  पर निगरानी रखना अवश्यक है और एक मजबूत पर्यावरणीय और सामाजिक सुरक्षा नीतिया बनाने के लिये दबाव भी बनाना जरूरी है।

यह कार्यशाला अंतरराष्ट्रीय विकास वित्त और वित्तीय संस्थाओं के विभिन्न पहलुओं पर नजर रखने और हस्तक्षेप करने हेतु एक समझ और स्पष्टता पर केद्रित होगा। साथ ही कैसे उन्हेंजवाबदेह और पारदर्शी बनाया जा सके। उसपर ध्यान दिया जायेगा  इसके अलावा वित्त विकास की सामाजिक.आर्थिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि की समझ को आलोचनात्मक रूप् सेरखेगा। साथ ही अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के कई सुत्रों या आयामो एवं भारत में उनके संचालन को समझने पर ध्यान दिया जाएगा। यह नए उभरते BRICS और  AIIB क्षेत्रीय बैंको कीपृष्ठभूमि पर चर्चा करेगा। नागरिक समाज परिप्रेक्ष्य,  अभीं तक IFIs के खिलाफ जनसंघर्षे और इन वित्तीय संस्थाओं के साथ कैसा लडा जा सके आदि भी कार्यशाला का एक हिस्सा होगे ।

इन सभी को समझने हेतु सेन्ट्रल भारत के सघर्षरथ साथियो के लिये तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन दिनाक 1 से 3 नवम्बर 2017 को होटल विज्ञयश्रीए एमपी नगर, प्रगति पेट्रोलपंप के पास भोपाल मे कि जा रहा है। आप साथियो से निवेदन है कि आप या आपकी संस्था से जो साथी इस विषय पर समझ बनाना चाहते है और समझकर आपने संघर्षो मे उपयोगकरना चाहते हो। उन साथियो का हम इस तीन दिवसीय कार्यशाला मे स्वागत करते है।

 

आयोजक:

राजेश कुमार
सेन्टर फ़ॉर फ़ाइनैन्शियल अकाउन्टेबिलिटी
नई दिल्ली
8130030411                                                                                                                     

योगेश दीवान
जन पहल
भोपाल, मध्यप्रदेश
9981773205  

राजकुमार सिन्हा
जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय
भोपाल, मध्यप्रदेश
9424385139

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*